नई दिल्ली। कुतुब मीनार में पूजा के अधिकार की याचिका पर दिल्ली के साकेत कोर्ट में सुनवाई चल रही है। हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने कुतुब मीनार में पूजा के अधिकार वाली याचिका का विरोध किया है। साकेत कोर्ट में सोमवार को दाखिल किए हलफनामे में कहा कि कुतुब मीनार पूजा का स्थान नहीं है और इसकी मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता।
दरअसल हिंदू पक्ष की दलील थी कि 27 मंदिर तोडक़र मस्जिद बनाई गई है जिसके अवशेष वहां मौजूद हैं। इसलिए वहां मंदिरों को दोबारा बनाए जाए। वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि ्रस्ढ्ढ ने कुव्व्त उल इस्लाम मस्जिद में नमाज बंद करवा दी है।
इस पर हरिशंकर ने आर्टिकल 25 के संदर्भ में कहा है कि उन्हें पूजा के संवैधानिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है।
जैन ने कहा है यह तय करना होगा कि मेरा कोई अधिकार नहीं है। अपील में यह तय नहीं किया जा सकता कि मेरे पास अधिकार है या नहीं। साथ ही यह भी कहा- अयोध्या फैसले में, यह माना गया है कि एक देवता जीवित रहता है, वह कभी नहीं खोता है। अगर ऐसा है, तो मेरा पूजा करने का अधिकार बच जाता है। एक्ट की 1958 की धारा 16 का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक जो पूजा स्थल या तीर्थस्थल है, उसका उपयोग उसके चरित्र के इतर किसी और काम के लिए नहीं किया जाएगा। एडवोकेट सुभाष गुप्ता ने कहा कि निचली अदालत का फैसला गलत नहीं है। 1991 अधिनियम पूजा स्थलों को उनके धर्मांतरण से बचाने के लिए है। 1958 अधिनियम स्मारक के रखरखाव के लिए है, जिन्हें संरक्षण दिया जाता है।
किसी जगह का महत्व उस तारीख से निर्धारित होता है जब वह 1958 के अधिनियम के दायरे में आता है। अगर 60 दिनों में कोई आपत्ति नहीं आती तो उसे यथास्थिति रखा जाता है। इसलिए देश में कई स्मारक पूजा स्थल हैं भी और नहीं भी। इसे बदला नहीं जा सकता है।